तो सेना अलग: सरकार अलग!

वीरेन्द्र सिंह परिहार

दिनांक 6-7 मई की रात्रि पाकिस्तानी आतंकी अड्डो पर एयर स्ट्राइक किये जाने और बाद में पाकिस्तान के साथ खुले युद्ध में भारतीय सेना ने अनुपम शौर्य और कुशल रणनीति का परिचय दिया जिसके चलते पाकिस्तान में अधिकांश हवाई अड्डे तबाह हो गये, उसकी रक्षा प्रणाली एक तरह से ध्वस्त हो गई। दूसरी तरफ उसकी तरह से किये गये ड्रोन और मिसाइल हमलों को बेकार कर दिया गया। इसे लेकर सेना के समर्थन में कांग्रेस पार्टी एक तरफ जयहिंद यात्रा निकाल रही है तो दूसरी तरफ मोदी सरकार पर हमले कर रही है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी आये दिन सरकार से इस सम्बन्ध में तरह-तरह के सवाल पूछ रहे हैं। कह रहे हैं कि बताओं कितने लड़ाकू विमान नष्ट हुये जबकि दुनिया भर के विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि इस छोटे से युद्ध में भारत ने जो कमाल दिखाया है तो उसकी शक्ति का लोहा पूरी दुनिया मान रही है। इसके पूर्व जब 2016 में भारतीय सेना ने उरी में स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट में एयर स्ट्राइक की, तब भी कांग्रेस समेत विपक्ष का रवैया यही था कि जो कुछ किया है, भारतीय सेना ने किया है, भला सरकार का इसमें क्या श्रेय। यह बात और है कि ये लोग तब भी सरकार से स्ट्राइक का प्रमाण भी माँग रहे थे।

ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह कि क्या सेना और सरकार इस तरह से अलग है कि उनके बीच कोई सम्बन्ध ही नहीं है। वस्तुतः सेना सरकार का ही एक अंग है जो सरकार के रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करती है। गौर करने की बात यह है कि क्या वगैर राजनीतिक नेतृत्व के सेना कोई बड़ा निर्णय या कदम उठा सकती है। यह इससे समझा जा सकता है कि जब वर्ष 2008 में मुम्बई में 26/11 हुआ, तब सेना पाकिस्तान से दो-दो हाथ करना चाहती थी जिसे लेकर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज बुश ने लिखा है कि मनमोहन सरकार ने सेना को पाकिस्तान के विरूद्ध कोई कदम उठाने की छूट इसलिये नहीं दी कि इससे हिन्दू राष्ट्रवाद की भावना का विस्तार होगा जिसका लाभ भाजपा को मिलेगा। यहाँ तक कि पाकिस्तानी भारतीय सैनिकों का सिर काट ले जाते थे पर भारत सरकार के रवैये के चलते यूपीए के दौर में सेना कुछ नहीं कर पाती थी. यदि सेना ही ऐसे मामलों में सब कुछ होती तो 1962 में जब चीन-भारत में युद्ध हुआ और भारतीय सेना के पास अस्त्रों का अभाव तो था ही, पैरों में पहनने के लिये सही जूते तक नहीं थे क्योंकि तब नेहरू सरकार सेना को मजबूत करने के बजाय पंचशील के कबूतर उड़ा रहे थे। सरकार के इस उदासीन रवैये के चलते भारतीय सेना को कितनी शर्मनाक पराजय मिली थी, यह सभी को पता है।

 यूपीए शासन के दौर में सेना के पास बुलेट प्रूफ जैकेट तक नहीं होती थी। राफेल विमानों की खरीदी को लेकर तब के रक्षामंत्री एन्टोनी ने संसद में कह दिया था कि राफेल लड़ाकू विमानों के खरीदने के लिये सरकार के पास रूपये नहीं हैं। ऐसी स्थिति में सेना सफलतापूर्वक कैसे कोई अभियान चला सकती या युद्ध लड़ सकती थी। आखिर राफेल विमानों के दम पर ही पाकिस्तान की सीमा पर प्रवेश किये वगैर ही आतंकवादी अड्डो पर एयर स्ट्राइक कर दी गई। इस मामले में कांग्रेस पार्टी का रवैया पूरी तरह दोहरे मापदण्ड वाला है। 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और पूर्वी पाकिस्तान की जगह स्वतंत्र बांग्लादेश का निर्माण हुआ तो इस पैमाने के आधार पर कांग्रेस पार्टी को इसका श्रेय सेना को देना चाहिए था लेकिन तब इसका श्रेय न तो सेना को न तब के रक्षा मंत्री और यहाँ तक कि इंदिरा सरकार को भी नहीं दिया गया था। इसका एक मात्र श्रेय श्रीमती इंदिरा गांधी को दिया गया था और यह कहा गया कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने इतिहास का नहीं, भूगोल भी बदल दिया है। निश्चित रूप से ऐसे संवेदनशील एवं राष्ट्र से जुडे मामलों में भी कांग्रेस पार्टी का रवैया पूरी तरह से अंध विरोध का रहता है।

लोगो को यह भी पता होगा कि वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के दौरान तब की कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा था- ‘‘वाजपेयी सेनाओं को कटवा रहा है। ऐसी बातों से जहाँ सेनाओं का मनोबल गिरता है तो दूसरी तरफ विश्व-फलक पर पाकिस्तान ऐसी बातों का उपयोग करता है।

बड़ी बात यह कि यूपीए शासन के दौर की तरह सेना को कोई छूट ही नहीं दी गई, उसके हाँथ बंद रखे गये तो सेना क्या कर लेगी जबकि मोदी सरकार ने सेना को हाथ खोलने की खुली छूट दी। दूसरी तरफ ऐसे मामले में भाजपा का रवैया पूरी तरह अलग रहता है। चाहे 1962 चीन के साथ युद्ध रहा हो, या 1965 एवं 1971 का पाकिस्तान के साथ युद्ध रहा हो, भाजपा जो तब जनसंघ पार्टी थी, वह पूरी तरह सरकार के साथ खड़ी थी। प्रचार तो यहाँ तक किया जाता है कि तब जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा था। हांलाकि इसमें कोई सच्चाई नहीं है लेकिन यह सच है कि उस दौर में वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को देश का एकमात्र नेता बताया था। यानी देश के प्रधानमंत्री के साथ पूरा देश एकजुट है- ऐसा एहसास कराया था। लेकिन यह तब होता है जब राजनीति राष्ट्र के लिये होती है। निहित स्वाथों एवं मात्र सत्ता की राजनीति करने वाले या तो अंध समर्थक हो सकते हैं, या अंध विरोधी। बड़ी बात यह भी कि देश में कोई भी बड़ा काम हो, उसमें सरकार की भूमिका किसी न किसी रूप में होगी ही।

वीरेन्द्र सिंह परिहार

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