विविधा

अभिषेक मनु सिंघवी सीडी काण्ड पर विशेष

   सचाई को कब्रिस्तान बनाते हमारे शासक

‘सत्य‍मेव जयते’। यह हमारा पौराणिक मूलमन्त्र ही नहीं, हमारे संविधान का राष्ट्रबोध भी है। इसके बावजूद इस कथन में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि स्वतन्त्रता के बाद हमारी व्यवस्था सचाई को इतनी गहरी दफनाते जा रही है कि वह कभी बाहर आ ही नहीं पाती।

इस के कितने उदाहरण गिनाये जायें? यह तो एक किताब ही बन जायेगी। चलो कुछ पुराने और नये तो गिना दें। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के बारे में सचाई आज तक बाहर नहीं आ सकी। जन संघ अध्य क्ष श्यामा प्रसाद मुकर्जी और दीनदयाल उपाध्याय की मुत्यु कैसे और किन हालात में हुर्इ इसकी सचाई आज तक उजागर नहीं हो सकी। नागरवाला काण्ड और उसमें संलिप्त मुख्य खज़ांची मल्होत्रा दोनों की मुत्यु पर भी शक अभी भी बरकरार है। आपातकाल किन हालात में लगा, उसके सारे काग़ज़ात आज सरकार के पास ही नहीं हैं। बोफर्स की गुत्थी आज तक न सुलझ सकी है। अंग्रेज़ तो चले गये पर उनके द्वारा दिये गये न्यायतन्त्रे के गुलाम हम आज भी है। अपराध तो हो जाता है पर अपराधी को सज़ा नहीं होती। एक हत्या होती है। पुलिस, जांच अधिकारी, अपराधी व अदालत सब एकमत होते हैं कि हत्या तो हुई, पर आरोपी छोड़ दिया जाता है कि उसने हत्या नहीं की क्योंकि अभियोग पक्ष उसके विरुद्ध कोई विश्वसनीय साक्ष्‍य प्रस्तुत नहीं कर पाया। मान लिया कि अभियुक्त ने हत्या‍ नहीं की पर किसने की? यह सचाई न तो अपराधी बता पाता है, न अदालत। बात वहीं छोड़ दी जाती है। आरोपी को तो न्याय मिल जाता पर अपराधी बच निकलता है और अभागे परिवार जिसने अपना रोटी कमाने वाला खो दिया उसे न्याय नहीं मिलता। एक प्रकार से यह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि न्याय अन्धा होता है।

यही बात अभिषेक मनु सिंघवी की तथाकथित सीडी के बारे में सच होने जा रही लगती है। यदि किसी की पहुंच हो, उसके पास पैसा हो और उसके पास अच्छा। वकील हो तो कोई भी सचाई को बाहर आने से रोक सकता है — यदि सदा के लिये नहीं तो काफी लम्बेभ समय तक तो अवश्य कर ही सकता है। इसी बीच आरोपी तो निर्दोष होने का दावा कर छाती तान कर फिरता रहता है। यह मान लेना कि सिंघवी के सम्बन्धित सीडी बिलकुल झूठी है उतना ही ग़लत होगा जितना कि यह निष्कर्ष निकाल बैठना कि यह बिलकुल सच्ची है। उसमें सिंघवी स्पष्ट पहचाने जाते हैं। वह उस महिला को प्रलोभन देते भी स्पकष्ट सुनाई देते हैं कि वह उसे जज बनवा देंगे ओर महिला भी इस बात को दोहराती है। सिंघवी ने एक अग्रणी वकील की हैसियत से कोर्ट से स्टे ले पाने में कोई देरी नहीं की और सीडी के प्रसारण पर रोक लगवा दी। यह अलग बात है कि सोशल मीडिया फिर भी इस सीडी को दिखाता फिर रहा है।

एक ओर तो सिंघवी दावा कर रहे हैं कि सीडी से छेड़़छाड़ की गई और दूसरी ओर उन्होंने अपने उस ड्राइवर से अदालत के बाहर समझौता कर लिया है जिसने यह सीडी जारी की थी। यदि सीडी से छेड़छाड़ की गई थी तो ड्राइवर से अदालत के बाहर समझौते की आवश्यकता क्या थी? यदि सिंघवी सच्चेा और निर्दोष हैं तो ड्राइवर ने तो उनके साथ धोखा किया हैं, अपराध किया है। ऐसे में सिंघवी जैसे श्रेष्ठ महानुभाव को एक अपराधी के साथ समझौता करने की क्या आवश्यसकता आन पड़ी? एक निर्दोष व अपराधी के बीच समझौता तो ग़ैरकानूनी ही नहीं अनैतिक भी है। उन्हें तो ड्राईवर को उसके अक्षम्य अपराध के लिये जेल भिजवाना चाहिये था।

फिर जब वह दावा करते हैं कि सीडी से छेड़छाड़ की गई है तो इसकी तो जांच हो सकती है। दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जायेगा। फिर उन्होंने सीडी को फॉरैन्सिक जांच के लिये क्यों नहीं भिजवाया?

हमारी मानसिकता और यहां तक कि हमारी नैतिकता पर भी पाश्चात्य सोच हावी होने लगी है। तर्क दिया जाने लगा है कि यदि दो वयस्क आपसी सहमति से कोई अपराध या अनैतिक कार्य भी करते हैं तो समाज को उससे कोई सरोकार नहीं। यदि यही अनैतिक कार्य न्यायालय परिसर या सार्वजनिक स्थल या कार्यलय में हो तब भी नहीं?

वस्तुत: कांग्रेस व उसके प्रवक्ता सिंघवी अपनी ही नैतिकता के पाखण्डा और अपने ही शब्दों के मायाजाल में फंस कर रह गये हैं। कांग्रेस तो ऐसे घिर गई है कि उससे न तो सिंघवी के विरुद्ध कोई कार्रवाई की जा पा रही है और न उन्हेंग छोड़ ही पा रही है। फिलहाल तो कांग्रेस ने यह कह कर अपना पल्लूा झाड़ लिया है कि यह सिंघवी का निजी मामला है। देखा जाये तो हर बलात्कार ही निजी मामला होता है। कोई युवक किसी युवती को शादी का वादा या प्रलोभन देकर उसका दैहिक शोषण करता है तो वह बलात्कार का ही अपराध होता है। फिर सिंघवी की सीडी और आंध्र प्रदेश के पूर्व राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी की सीडी में कोई अंतर नहीं। दोनों ने ही इसे छूठी, छेड़छाड़ की हुई और चरित्रहरण की कुचेष्टा बताया था। यदि सिंघवी का मामला निजी है तो तिवारी का क्यों नहीं? तिवारी को क्यों राज्यपाल पद से तुरन्त हटा दिया गया था? उसकी सचाई को क्यों आज तक उजागर नहीं होने दिया गया?

असल में आज कांग्रेस व सिंघवी को उनके ही मुखारबिन्द से निकले शब्दी खाने को दौड़ रहे हैं। जब कर्नाटक व गुजरात विधानसभाओं में भाजपा के विधायकों द्वारा अश्लील चित्रों को देखने के आरोप सामने आये थे तो कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में सिंघवी ने नैतिकता का पाठ पढ़ाने हुये भाषण दे डाला था कि सम्पूर्ण अनैतिकता और भ्रष्टाचार एक ही छत के नीचे भाजपा की सुपर मार्केट में मिल सकता है। अगर आप भ्रष्टाचार, पोर्नोग्राफी और कुशासन की खरीद करना चाहते हैं तब यह भाजपा की एकल खिड़की में उपलब्ध हैं। पर अब कांग्रेस व उसके प्रवक्ता की ज़ुबान पर ताला लग गया लगता है। कांग्रेस की सुपरमार्केट व इसकी एकल खिड़की में क्या-क्या मिलता है इसका विज्ञापन तो भंवरी देवी काण्ड में फंसे कांग्रेसी मन्त्री मदेरणा, एन डी तिवारी व स्वयं सिंघवी जैसे अनेक बड़े-बड़े लोग दे ही रहे हैं।

सिंघवी भूल गये कि हमारे कानून में पौर्न चित्र, साहित्य व फिल्में देखना कोई अपराध नहीं है। विधायकों का अपराध इतना था कि उन्होंने यह चित्र अपने मोबाइल पर विधान सभा में देखे। तिवारी की कथित सीडी राजभवन की है और सिंघवी की सुप्रीम कोर्ट में उनके कार्यालय की बताई जाती है।

जैसे घटनाक्रम चल रहा है उससे तो यही लगता है कि भारत के गणतन्त्र के कब्रिस्तान में सिंघवी सीडी की सच्चा ई भी सदा-सदा के लिये दफना दी जायेगी और इस गणतन्त्र का मालिक आम आदमी एक बार फिर इसकी वास्तविकता से वंचित कर दिया जायेगा।