आर्थिकी

गति से गुणवत्ता : भारतीय अर्थव्यवस्था का नया आत्मविश्वास


पंकज जायसवाल

वित्तीय वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही का GDP ग्रोथ रेट भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद उत्साहजनक संकेत लेकर आया है। यह वृद्धि केवल एक तिमाही का आकस्मिक उछाल नहीं है बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था की व्यवहारात्मक, संरचनात्मक, नीतिगत और वैश्विक परिस्थितियों के सामंजस्य का परिणाम है। इस तिमाही में GDP का तेज़ी से बढ़ना यह दिखाता है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब गति से अधिक गुणवत्ता की दिशा में बढ़ रही है और आर्थिक गतिविधियों में पिछले दशक में किये सुधारों और आधारभूत ढांचे में किये गए काम के कारण व्यापक आधार पर सुधार दिखाई दे रहा है।

भारत का आर्थिक परिदृश्य कई वर्षों से वैश्विक अस्थिरताओं जैसे कोरोना, भू-राजनीतिक तनाव, वैश्विक महँगाई, चीन की आर्थिक सुस्ती, ट्रम्प के टैरिफ, रेड से और ब्लैक सी में सप्लाई चेन की चुनौतियों और पश्चिमी देशों में धीमी वृद्धि के बीच भी स्थिर और मजबूत बना रहा है। दूसरी तिमाही की वृद्धि इसी स्थिरता और भारत के रेसिलियंस चरित्र का प्रमाण है। अगर विस्तार से इस GDP वृद्धि के प्रमुख कारणों को समझना है तो इसके निम्न काऱण प्रतीत होते हैं.

पहला कारण है भारतीय अर्थव्यवस्था का “रेसिलिएंट” चरित्र और इसकी जनसँख्या का इसका संपत्ति होना. भारत के GDP ग्रोथ का सबसे पहला और सशक्त कारण है इकॉनमी की रेसिलेंस, अर्थात इसके झटकों को झेलने की क्षमता और यह बनता है इसके संपत्ति सरीखे आबादी, साथ में विस्तृत और विस्तारित बाजार से। पिछले कुछ वर्षों में महामारी, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान, वैश्विक युद्ध-जैसी परिस्थितियों और वित्तीय बाजारों की अनिश्चितता के बावजूद भारत ने लगातार उच्च वृद्धि दर बनाए रखी और इसके पीछे उपरोक्त कारणों को समर्थन देने वाले जो कारक रहे वो ये रहे. पहला भारत का मोटे तौर पर सनातन अर्थशास्त्र का चरित्र जो यूज एवं थ्रो में मोटे तौर पर यकीन नहीं करता, दूसरा इसका उत्सवधर्मी चरित्र जो इसे हमेशा मंदी से निकाल लेता है, तीसरा इससे पैदा हुआ मज़बूत घरेलू खपत आधार, चौथा कृषि और उत्पादन आधारित अर्थव्यवस्था का बना रहना, पांचवां सरकारी पूँजीगत निवेश में रिकॉर्ड वृद्धि, छठा नए बिजनेस और डिजिटल अर्थव्यवस्था में उछाल, सातवां बैंकिंग सेक्टर की साफ-सुथरी बैलेंस शीट और NPA दबाव का कम होना, MSME की स्थिति में सरकारी प्रयासों से लगातार सुधार होना। रेसिलिएंस की उपरोक्त प्रकृति भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंदी जैसे बाहरी दबावों से बचाती रही और धीमी वैश्विक मांग के बावजूद इसमें वृद्धि बनाए रखी। यहां तक कि इसने ट्रम्प टैरिफ और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी एक कुशन का काम किया।

रेसिलिएंस के बाद जो अगला बड़ा कारण है, वह है ट्रम्प टैरिफ के कारण भी इस तिमाही की जीडीपी बढ़ी रही. सुनने में आश्चर्यजनक लगे लेकिन यह सत्य है. ट्रम्प टैरिफ के कारण “फ्रंट-लोडेड एक्सपोर्ट” बढ़ गया. मतलब अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन की वापसी के बाद संभावित टैरिफ नीतियों में बदलाव की आशंका से दुनिया भर के निर्यातकों में तेजी आई। भारतीय निर्यातकों ने भी इस संभावित जोखिम को भांपते हुए माल को पहले ही शिप कर दिया, अमेरिका/यूरोप के लिए ऑर्डर तेजी से क्लियर किए, उत्पादन चक्र को गति दी, लॉजिस्टिक देरी से बचने के लिए अतिरिक्त शिफ्टें लगाईं, इस फ्रंट-लोडिंग एक्सपोर्ट के कारण फैक्ट्रियों में उत्पादन और डिस्पैच काफी बढ़ा, जिससे GDP को भी सकारात्मक गति मिली। विशेष रूप से टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग गुड्स, फार्मा, केमिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स में तेज़ी देखी गई। जो डिस्पैच यह सितम्बर और इसके बाद करने वाले थे, उसे इन्होने टैरिफ वृद्धि की आशंका के कारण [पहले ही कर दिया. इससे उत्पादन प्री-पोन हो गया.

और सिर्फ फ्रंट लोडिंग एक्सपोर्ट में ही नहीं हुआ, GST बचत उत्सव योजना के कारण घरेलू बाजार में भी फ्रंट-लोडिंग हुआ. GST बचत उत्सव योजना ऐसी नीति थी जिसमें उपभोक्ताओं और थोक-विक्रेताओं दोनों को लाभ मिलना था। या तो उनके लिए छूट थी या लाभ का हिस्सा पास-थ्रू किया जाना था, इसलिए यदि माल को नवरात्र और अगले त्योहारों में बेचना है तो उत्पादों का स्टॉक नवरात्रि और दिवाली से पहले तेजी से बाजार में पहुंचना होगा, और वहां उसके पहले पहुचंना है तो माल का उत्पादन एडवांस में ही सितम्बर से पहले उत्पादित होकर थोक और फुटकर वितरकों के पास पहुंचना ही था. थोक और फुटकर विक्रेताओं ने भी बिक्री में उछाल भांपकर त्यौहार से पहले ही पहले से अतिरिक्त माल उठाया, जिससे कारखानों से इस तिमाही में डिस्पैच बढ़ा, सप्लाई-चेन गतिविधियों में जल्दी मांग आई और यह भी एक तरह का घरेलू फ्रंट-लोडिंग बना , जिसने दूसरी तिमाही में उत्पादन और बिक्री को तेजी से बढ़ाया।

इस जीडीपी वृद्धि के एक कारण में कम महँगाई और GST डिफ्लेटर का भी प्रभाव रहा. इस तिमाही में खुदरा महँगाई  और थोक महँगाई दोनों नियंत्रण में रहे।
काम महंगाई का अर्थ है कि उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति में सुधार हो रहा था, बचत का हिस्सा उपभोग और निवेश में लग रहा था, और GST डिफ्लेटर के कारण कंपनियों के इनपुट कॉस्ट में स्थिरता आ रही थी और ये सब जिससे उत्पादन बढ़ाने को प्रोत्साहित कर रहे थे ।

RBI की दो चरणों की रेपो रेट कटौती भी एक संकेत के रूप में थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था बाहरी कारणों से अस्थिर नहीं है. रिजर्व बैंक द्वारा लगातार दो बार रेपो रेट में कटौती ने कर्ज सस्ता किया, नई गृह ऋण मांग बढ़ाई, वाहनों की बिक्री को बढ़ावा दिया, MSME और मैन्युफैक्चरिंग को वर्किंग कैपिटल सपोर्ट दिया और प्राइवेट कैपेक्स को प्रोत्साहन दिया। घरेलू खपत में वृद्धि का एक बड़ा कारण सस्ता ऋण भी रहा, जिसने अर्थव्यवस्था में नई जान भरी।

जैसा कि आंकड़े बताते हैं, इस तिमाही में प्राइवेट फाइनल कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर (PFCE) में भी उछाल देखने को मिला और दूसरी तिमाही में निजी उपभोग खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। लोगों ने यात्रा, खाना पीना, रिटेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, होम इंप्रूवमेंट, वाहनों पर अधिक खर्च किया। यह वृद्धि “उपभोक्ता विश्वास” और जीडीपी के बढ़ने का संकेत था।

इससे नॉन-IT सर्विस सेक्टर और मैन्युफैक्चरिंग में भी मजबूत वृद्धि देखने को मिली। इस तिमाही में खासतौर से होटल पर्यटन, हॉस्पिटैलिटी, ट्रांसपोर्ट, बैंकिंग और फाइनेंस, टेलीकॉम, लॉजिस्टिक्स, ई-कॉमर्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स जैसे सेक्टरों ने शानदार प्रदर्शन किया। मैन्युफैक्चरिंग PMI लगातार विस्तार क्षेत्र में रहा, जिससे GDP को मजबूती मिली।

एक कारण २०२४-२५ में कम बेस का रहना भी रहा, कम बेस के कारण  वृद्धि का प्रतिशत में इजाफ़ा ज्यादा रहा क्यूंकि 2024-25 की दूसरी तिमाही का बेस रेट 5.6% था। कम बेस का अर्थ है कि थोड़े से वास्तविक उत्पादन सुधार से भी प्रतिशत में अधिक वृद्धि दिखती है। इसने भी प्रतिशत रूप के आंकड़ों पर सकारात्मक प्रभाव डाला।

इस तिमाही में रियल एस्टेट और वित्तीय सेक्टर के उभार के आंकड़े देखने को मिले। रियल एस्टेट—विशेष रूप से आवासीय परियोजनाएँ, कॉमर्शियल ऑफिस, को-वर्किंग, वेयरहाउसिंग में मजबूत मांग देखी गई। बैंकिंग और NBFC सेक्टर की बैलेंस शीट साफ़ होने से भी कर्ज प्रवाह बढ़ा, औद्योगिक ऋण में सुधार हुआ, क्रेडिट ग्रोथ रही, इन सभी सेक्टरों ने GDP वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

अगर निष्कर्ष देखें तो GDP की यह वृद्धि केवल मौसमी नहीं बल्कि संरचनात्मक संकेत मजबूत है. दूसरी तिमाही की GDP वृद्धि यह दर्शाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर है उपभोग मजबूत है निवेश चक्र वापस आ रहा है और वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद घरेलू अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है. भविष्य के लिए यह संकेत महत्वपूर्ण है कि भारत अब केवल एक “उभरती” अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि एक सतत, स्थिर और संरचनात्मक रूप से मजबूत अर्थव्यवस्था है और आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत २०४७ प्रधानमंत्री मोदी का संकल्प भी है

पंकज जायसवाल