राष्ट्र के सतत भविष्य का द्योतक हैं सशक्त महिलाएं

डॉ. शंकर सुवन सिंह
नारी राष्ट्र का अभिमान है। नारी राष्ट्र की शान है। भारतीय परिवेश व परिधान की शोभा है नारी। नर से नारायण की कहावत को चरितार्थ करती है नारी। मानवता की मिशाल है नारी। महिला सशक्तिकरण से लैंगिक समानता का संचार होता है। महिला मानवता को धार देती है। नारी संघर्षों की कहानी है। प्यार और सम्मान की मूरत है नारी। महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य है समाज में महिलाओं के वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना अर्थात महिलाओं का शक्तिशाली होना। महिलाएं शक्तिशाली होंगी तो वह अपने जीवन से जुड़े प्रत्येक फैसले स्वयं ले सकती है। ऐसी महिलाएं परिवार और समाज को विकास की राह पर ले जाती हैं। महिलाओं को दिए गए अधिकार महिला सशक्तिकरण का आधार है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार महिलाओं के विकास में निरंतर अग्रसर है। किसी ने क्या खूब कहा है – हर सफल इंसान के पीछे एक महिला का हाथ होता है, इसी प्रकार राष्ट्र निर्माण में एक नहीं बल्कि सैकड़ों महिला वैज्ञानिकों का सहयोग होता है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है। अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए। राष्ट्र का गौरव है नारी सशक्तिकरण। अतएव हम कह सकते हैं कि सशक्त महिलाएं ही सशक्त देश का निर्माण करती हैं। लिंग समानता पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित करती है, चाहे वह घर पर हो या शैक्षणिक संस्थानों में या कार्यस्थलों पर। लैंगिक समानता राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता की गारंटी देती है। भारत में लैंगिक समानता के आधार पर महिलाओं को मिले 11 अधिकार इस प्रकार हैं- 1- समान मेहनताना का अधिकार: इक्वल रिम्यूनरेशन एक्ट में दर्ज प्रावधानों के मुताबिक सैलरी के मामलों में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते हैं। किसी कामकाजी महिला को पुरुष के बराबर सैलरी लेने का अधिकार है। 2- गरिमा और शालीनता का अधिकार: महिला को गरिमा और शालीनता से जीने का अधिकार मिला है। किसी मामले में अगर महिला आरोपी है, उसके साथ कोई मेडिकल परीक्षण हो रहा है तो यह काम किसी दूसरी महिला की मौजूदगी में ही होना चाहिए। 3- कार्यस्थल पर उत्पीड़न से सुरक्षा: भारतीय कानून के मुताबिक अगर किसी महिला के खिलाफ दफ्तर में शारीरिक उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न होता है, तो उसे शिकायत दर्ज करने का अधिकार है। इस कानून के तहत, महिला 3 महीने की अवधि के भीतर ब्रांच ऑफिस में इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (आई सी सी ) को लिखित शिकायत दे सकती है। 4 -घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार: भारतीय संविधान की धारा 498 के अंतर्गत पत्नी, महिला लिव-इन पार्टनर या किसी घर में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार मिला है। पति, मेल लिव इन पार्टनर या रिश्तेदार अपने परिवार के महिलाओं के खिलाफ जुबानी, आर्थिक, जज्बाती या यौन हिंसा नहीं कर सकते। आरोपी को 3 साल गैर-जमानती कारावास की सजा हो सकती है या जुर्माना भरना पड़ सकता है। 5 -पहचान जाहिर नहीं करने का अधिकार: किसी महिला की निजता की सुरक्षा का अधिकार हमारे कानून में दर्ज है। अगर कोई महिला यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है तो वह अकेले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज करा सकती है। किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में बयान दे सकती है। 6- मुफ्त कानूनी मदद का अधिकार: लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट के मुताबिक बलात्कार की शिकार महिला को मुफ्त कानूनी सलाह पाने का अधिकार है. लीगल सर्विस अथॉरिटी की तरफ से किसी महिला का इंतजाम किया जाता है। 7- रात में महिला को नहीं कर सकते गिरफ्तार: किसी महिला आरोपी को सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं कर सकते। अपवाद में फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के आदेश को रखा गया है। कानून यह भी कहता है कि किसी से अगर उसके घर में पूछताछ कर रहे हैं तो यह काम महिला कांस्टेबल या परिवार के सदस्यों की मौजूदगी में होना चाहिए। 8- वर्चुअल शिकायत दर्ज करने का अधिकार: कोई भी महिला वर्चुअल तरीके से अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है. इसमें वह ईमेल का सहारा ले सकती है। महिला चाहे तो रजिस्टर्ड पोस्टल एड्रेस के साथ पुलिस थाने में चिट्ठी के जरिये अपनी शिकायत भेज सकती है। इसके बाद एसएचओ महिला के घर पर किसी कांस्टेबल को भेजेगा जो बयान दर्ज करेगा। 9-अशोभनीय भाषा का नहीं कर सकते इस्तेमाल: किसी महिला (उसके रूप या शरीर के किसी अंग) को किसी भी तरह से अशोभनीय, अपमानजनक, या सार्वजनिक नैतिकता या नैतिकता को भ्रष्ट करने वाले रूप में प्रदर्शित नहीं कर सकते. ऐसा करना एक दंडनीय अपराध है। 10- महिला का पीछा नहीं कर सकते: आईपीसी की धारा 354 डी के तहत वैसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी जो किसी महिला का पीछे करे, बार-बार मना करने के बावजूद संपर्क करने की कोशिश करे या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन जैसे इंटरनेट, ईमेल के जरिये मॉनिटर करने की कोशिश करे। 11- जीरो एफआईआर का अधिकार: किसी महिला के खिलाफ अगर अपराध होता है तो वह किसी भी थाने में या कहीं से भी एफआईआर दर्ज करा सकती है. इसके लिए जरूरी नहीं कि कंप्लेंट उसी थाने में दर्ज हो जहां घटना हुई है. जीरो एफआईआर को बाद में उस थाने में भेज दिया जाएगा जहां अपराध हुआ हो। महिलाओं के साथ भेदभाव को समाप्त करने में अध्यात्म गहरी भूमिका निभाता है। हमारी संस्कृति में स्त्री का दर्जा पुरुष से कम नहीं माना गया है। मुगल आक्रमण से पहले स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा दिया जाता था। हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार ज्ञान की देवी सरस्वती, धन की देवी लक्ष्मी और शक्ति की देवी दुर्गा पूजा जाता है। हमारे जीवन को अधिशासित करने वाले सत, रज और तम, इन तीन गुणों में सामंजस्य बनाए रखने के लिए हम देवी मां की ही प्रार्थना करते हैं। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। मनुस्मृति 3/56 ।। जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं। नारी जननी है। नारी नर का अभिमान है। नारी राष्ट्र के विकास की नींव है। नारी सृष्टि का अनमोल उपहार है । नारी से सृष्टि और सृष्टि से नारी है। नारी सशक्त बनेगी तो देश सशक्त बनेगा। नैतिक मूल्यों को अपनाने से ही नारी सशक्त बनेगी। वैदिक साहित्य में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के कारण नारी पूजनीय एवं वंदनीय थी। परंतु वर्तमान समय में नारियों का पाश्चात्य संस्कृति के कारण व्यसन, नशा विकृतियों में लिप्त होना आदि अवगुण नारी को अबला बनाता है। नारी जीवन में सदगुणों को अपनाकर फिर से देवत्व को प्राप्त हो सकती है। संस्कृति, संस्कार से बनती है। सभ्यता, नागरिकता से बनती है। नागरिकता मानव की पहचान है। नर और नारी दोनों मानव हैं। मानव ही किसी भी देश के नागरिक कहलाते हैं। नागरिक शब्द से नागरिकता का निर्माण हुआ। लैंगिक समानता किसी भी राष्ट्र के सतत भविष्य का द्योतक होता है। लैंगिक असमानता समाज के संतुलन व्यवस्था और विकास को प्रभावित करती है। समतामूलक समाज राष्ट्र को संतुलित करता है। किसी भी राष्ट्र की सभ्यता की पहचान उसके संतुलित समाज से ही होती है। अतएव हम कह सकते हैं कि लैंगिक समानता, समतामूलक समाज को स्थापित करता है।

लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह

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