स्वामी विवेकानंद: विचारों के युगदृष्टा, युवाओं के पथप्रदर्शक

स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि (4 जुलाई) पर विशेष
– योगेश कुमार गोयल

स्वामी विवेकानंद सदैव युवाओं के प्रेरणास्रोत और आदर्श व्यक्त्वि के धनी माने जाते रहे हैं, जिन्हें उनके ओजस्वी विचारों और आदर्शों के कारण ही जाना जाता है। वे आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि थे और खासकर भारतीय युवाओं के लिए उनसे बढ़कर भारतीय नवजागरण का अग्रदूत अन्य कोई नेता नहीं हो सकता। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद अपने 39 वर्ष के छोटे से जीवनकाल में समूचे विश्व को अपने अलौकिक विचारों की ऐसी बेशकीमती पूंजी सौंप गए, जो आने वाली अनेक शताब्दियों तक समस्त मानव जाति का मार्गदर्शन करती रहेगी। विवेकानंद के बारे में कहा जाता है कि वे स्वयं भूखे रहकर अतिथियों को खाना खिलाते थे और बाहर ठंड में सो जाते थे। मानवता के वे कितने बड़े हितैषी थे, यह उनके इस वक्तव्य से समझा जा सकता है कि भारत के 33 करोड़ भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी-देवताओं की भांति मंदिरों में स्थापित कर दिया जाए और मंदिरों से देवी-देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाए। विवेकानंद का व्यक्तित्व कितना विराट था, यह गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि अगर आप भारत को जानना चाहते हैं तो आप विवेकानंद को पढि़ए। विवेकानंद का कहना था कि मेरी भविष्य की आशाएं युवाओं के चरित्र, बुद्धिमत्ता, दूसरों की सेवा के लिए सभी का त्याग और आज्ञाकारिता, खुद को और बड़े पैमाने पर देश के लिए अच्छा करने वालों पर निर्भर है। युवा शक्ति का आव्हान करते हुए उन्होंने अनेक मूलमंत्र दिए।
वे एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिनकी ओजस्वी वाणी सदैव युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत बनी रही। विवेकानंद ने देश को सुदृढ़ बनाने और विकास पथ पर अग्रसर करने के लिए हमेशा युवा शक्ति पर भरोसा किया। युवा वर्ग से उन्हें बहुत उम्मीदें थीं और युवाओं की अहम् भावना को खत्म करने के उद्देश्य से ही उन्होंने अपने एक भाषण में कहा भी था कि यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे नहीं बढ़ेगा। इसलिए यदि सफल होना चाहते हो तो सबसे पहले अपने अहम् का नाश कर डालो। उनका कहना था कि मेरी भविष्य की आशाएं युवाओं के चरित्र, बुद्धिमत्ता, दूसरों की सेवा के लिए सभी का त्याग और आज्ञाकारिता, खुद को और बड़े पैमाने पर देश के लिए अच्छा करने वालों पर निर्भर है। युवा शक्ति का आव्हान करते हुए उन्होंने एक मंत्र दिया था, ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ अर्थात् ‘उठो, जागो और तब तक मत रूको, जब तक कि मंजिल प्राप्त न हो जाए।’ ऐसा अनमोल मूलमंत्र देने वाले स्वामी विवेकानंद ने सदैव अपने क्रांतिकारी और तेजस्वी विचारों से युवा पीढ़ी को ऊर्जावान बनाने, उसमें नई शक्ति एवं चेतना जागृत करने और सकारात्कमता का संचार करने का कार्य किया।
युवा शक्ति का आव्हान करते हुए स्वामी विवेकानंद ने अनेक मूलमंत्र दिए, जो देश के युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। उनका कहना था, ‘‘ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं। वो हम ही हैं, जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है। मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी से मेरे कार्यकर्ता आ जाएंगे। डर से भागो मत, डर का सामना करो। यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं। जो भी कार्य करो, वह पूरी मेहनत के साथ करो। दिन में एक बार खुद से बात अवश्य करो, नहीं तो आप संसार के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति से मिलने से चूक जाओगे। उच्चतम आदर्श को चुनो और उस तक अपना जीवन जीयो। सागर की तरफ देखो, न कि लहरों की तरफ। महसूस करो कि तुम महान हो और तुम महान बन जाओगे। काम, काम, काम, बस यही आपके जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। धन पाने के लिए कड़ा संघर्ष करो पर उससे लगाव मत करो। जो गरीबों में, कमजोरों में और बीमारियों में शिव को देखता है, वो सच में शिव की पूजा करता है। पृथ्वी का आनंद नायकों द्वारा लिया जाता है, यह अमोघ सत्य है, अतः एक नायक बनो और सदैव कहो कि मुझे कोई डर नहीं है। मृत्यु तो निश्चित है, एक अच्छे काम के लिए मरना सबसे बेहतर है। कुछ सच्चे, ईमानदार और ऊर्जावान पुरुष और महिलाएं एक वर्ष में एक सदी की भीड़ से अधिक कार्य कर सकते हैं। विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।’’
11 सितम्बर 1893 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म पर अपने प्रेरणात्मक भाषण की शुरूआत उन्होंने ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ के साथ की तो बहुत देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। अपने उस भाषण के जरिये उन्होंने दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाया। विदेशी मीडिया और वक्ताओं द्वारा भी स्वामीजी को धर्म संसद में सबसे महान व्यक्तित्व और ईश्वरीय शक्ति प्राप्त सबसे लोकप्रिय वक्ता बताया जाता रहा। यह स्वामी विवेकानंद का अद्भुत व्यक्तित्व ही था कि वे यदि मंच से गुजरते भी थे तो तालियों की गड़गड़ाहट होने लगती थी। उन्होंने 1 मई 1897 को कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन तथा 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। 4 जुलाई 1902 को इसी रामकृष्ण मठ में ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण किए वे चिरनिद्रा में लीन हो गए लेकिन उनकी कीर्ति युगों-युगों तक जीवंत रहेगी।

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