राजनीति

संगठन, अनुशासन और आत्मविश्वास का प्रतीक – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

-संदीप सृजन

भारतीय समाज में यदि कोई संगठन संगठन, अनुशासन और आत्मविश्वास के आदर्शों का जीवंत प्रतीक है, तो वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)। 27 सितंबर 1925 (विजयादशमी) को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन न केवल हिंदू समाज को एकजुट करने का माध्यम बना बल्कि लाखों युवाओं में राष्ट्रभक्ति, शारीरिक बल और मानसिक दृढ़ता का संचार करने वाला स्रोत भी सिद्ध हुआ। आरएसएस की शाखाएँ, जो पूरे देश में फैली हुई हैं, वहाँ न केवल व्यायाम और खेल होते हैं बल्कि एक ऐसा वातावरण रचता है जहाँ व्यक्ति का चरित्र निर्माण होता है और उस चरित्र से राष्ट्र का निर्माण होता है । आज, जब विश्व पटल पर भारत की सांस्कृतिक शक्ति उभर रही है, आरएसएस का योगदान संगठित प्रयासों के रूप में स्पष्ट दिखाई देता है।

आरएसएस की स्थापना का बीज 1925 में बोया गया, जब देश ब्रिटिश साम्राज्यवाद की चपेट में था। डॉ. हेडगेवार, एक चिकित्सक होने के साथ-साथ एक दूरदर्शी समाज सुधारक थे जिन्हें विनायक दामोदर सावरकर की हिंदुत्व पुस्तक ने गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने महसूस किया कि हिंदू समाज की एकता की कमी ही देश को गुलाम बनाए रखने का कारण है। इसलिए, विजयादशमी के शुभ अवसर पर नागपुर के एक छोटे से मैदान में मात्र 15-20 युवाओं के साथ पहली शाखा शुरू की गई। उद्देश्य था: हिंदू अनुशासन के माध्यम से चरित्र निर्माण और हिंदू राष्ट्र की स्थापना।

आरएसएस का इतिहास संघर्षों से भरा है। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद संगठन पर प्रतिबंध लगा लेकिन यह केवल 18 महीने चला। 1975 के आपातकाल में भी प्रतिबंधित होने पर स्वयंसेवकों ने भूमिगत रहकर लोकतंत्र की रक्षा की। 1992 के बाबरी विध्वंस के बाद भी प्रतिबंध झेला लेकिन हर बार संगठन मजबूत होकर उभरा। आज, 2025 में अपनी शताब्दी के करीब पहुँचते हुए, आरएसएस में 50-60 लाख सदस्य और 56,000 से अधिक शाखाएँ हैं जो इसे विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बनाता है। यह इतिहास दर्शाता है कि कैसे संगठित प्रयास विपरीत परिस्थितियों में भी आत्मविश्वास को बनाए रखते हैं।

आरएसएस की विचारधारा हिंदुत्व पर आधारित है जो केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। संस्थापक हेडगेवार का मानना था कि “हिंदू समाज में शारीरिक बल, मानसिक अनुशासन और चरित्र की कमी है जिसे दूर करना आवश्यक है।” संगठन का मूल मंत्र है: व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण। यह हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और आदिवासी समुदायों को एक परिवार के रूप में देखता है और अल्पसंख्यकों को भी हिंदू संस्कृति अपनाने का निमंत्रण देता है।

आरएसएस का उद्देश्य केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक उत्थान है। यह स्वदेशी, स्वावलंबन और राष्ट्रनिष्ठा पर जोर देता है। गुरुजी एम.एस. गोलवलकर ने कहा था, “हिंदू राष्ट्र का अर्थ है सांस्कृतिक एकता जहाँ सभी भारतीय हिंदू संस्कृति के मूल्यों से प्रेरित हों।” यह विचारधारा स्वयंसेवकों में आत्मविश्वास जगाती है क्योंकि यह उन्हें बताती है कि वे केवल व्यक्ति नहीं, राष्ट्र के निर्माणकर्ता हैं। वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत हैं जो संगठन की दिशा निर्धारित करते हैं। उनके नीचे सरकार्यवाह (जैसे दत्तात्रेय होसबाले) कार्यकारी भूमिका निभाते हैं। संगठन को प्रांत, क्षेत्र, जिला, तहसील और मंडल स्तरों पर विभाजित किया गया है जहाँ प्रत्येक इकाई स्वायत्त होते हुए भी केंद्रीय निर्देशों का पालन करती है।

संगठन में कोई औपचारिक सदस्यता नहीं है; स्वयंसेवक शाखा में भागीदारी से जुड़ते हैं। प्रचारक, पूर्णकालिक संगठन की रीढ़ हैं जो जीवन समर्पित कर देते हैं। लगभग 2,500 प्रचारक हैं, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नाम शामिल हैं। यह संरचना दर्शाती है कि कैसे आरएसएस एक विशाल वृक्ष की भाँति फैला है जहाँ हर पत्ता संगठित और अनुशासित है। कार्यकर्ताओं में 95 प्रतिशत गृहस्थ हैं जो दैनिक जीवन में संगठन के मूल्यों को जीते हैं। यह लचीलापन और गहराई संगठन को मजबूत बनाती है।

आरएसएस की आत्मा है उसकी शाखाएँ। ये दैनिक या साप्ताहिक सभाएँ हैं जो पार्कों या मैदानों में एक घंटे के लिए आयोजित होती हैं। शाखा में सूर्य नमस्कार, व्यायाम, खेल, परेड (समता), गीत, प्रार्थना और बौद्धिक चर्चा शामिल होती है। प्रभात शाखाएँ सुबह, सायं शाखाएँ शाम को लगती हैं। 2019 तक 84,000 से अधिक शाखाएँ थीं जिनमें 66 प्रतिशत छात्र शामिल हैं। प्रशिक्षण में लाठी, तलवार, भाला जैसे मार्शल आर्ट सिखाये जाते हैं जो शारीरिक फिटनेस के साथ-साथ मानसिक दृढ़ता विकसित करते हैं। शिविरों में प्राथमिक चिकित्सा और आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाता है। गुरुजी गोलवलकर ने कहा था, “शाखा केवल खेल-कूद नहीं, बल्कि राष्ट्रनिष्ठा का संस्कार है।” यह दैनिक दिनचर्या स्वयंसेवकों को अनुशासित बनाती है और आत्मविश्वास से भर देती है क्योंकि यहाँ हर कोई समान है, कोई भेदभाव नहीं। आरएसएस में अनुशासन केवल नियम नहीं बल्कि जीवन शैली है। शाखा में वर्दी (खाकी हाफ पैंट से अब भूरी पैंट तक विकसित), समयबद्धता और आज्ञाकारिता अनिवार्य है। महात्मा गांधी ने 1934 में एक शिविर का दौरा कर कहा था, “संघ में गजब का अनुशासन है, छुआछूत का नामोनिशान नहीं।” यह अनुशासन शारीरिक (योग, परेड) और मानसिक (चर्चा, चिंतन) दोनों स्तरों पर होता है।

स्वयंसेवक न्यूनतम अपेक्षाओं का पालन करते हैं, शाखा में नियमित भागीदारी, सेवा कार्य और राष्ट्रभक्ति। आपातकाल में भूमिगत रहकर स्वयंसेवकों ने अनुशासन का प्रमाण दिया जब उन्होंने लाखों लोगों को संगठित कर लोकतंत्र बहाल किया। आज भी, राहत कार्यों में – जैसे 1971 के ओडिशा चक्रवात या 2020 की कोविड महामारी में-आरएसएस का अनुशासन स्पष्ट दिखता है। यह गुण संगठन को विपत्तियों में अटल बनाए रखता है। आरएसएस स्वयंसेवकों में आत्मविश्वास का निर्माण करता है जो उसके मूल उद्देश्य का हिस्सा है। शाखा के खेल और नेतृत्व भूमिकाएँ युवाओं को सिखाती हैं कि वे अकेले नहीं, बल्कि एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं। डॉ. हेडगेवार का विश्वास था कि “हिंदू समाज में पराक्रम की कमी है जिसे दूर कर आत्मविश्वास जगाना है।” 

प्रशिक्षण शिविरों में चुनौतियाँ दी जाती हैं- जैसे रात्रि मार्च या आपदा सिमुलेशन-जो स्वयंसेवकों को संकटों का सामना करने की क्षमता देते हैं। दादरा-नागर हवेली मुक्ति संग्राम में आरएसएस स्वयंसेवकों ने गोवा के विसर्जन में भूमिका निभाई जो उनके आत्मविश्वास का प्रमाण है। आज भाजपा के नेताओं में पूर्व प्रचारकों का योगदान दिखता है जो दर्शाता है कि कैसे आरएसएस व्यक्तियों को राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए तैयार करता है। राष्ट्रीय आंदोलनों में स्वतंत्रता संग्राम से लेकर राम जन्मभूमि तक आरएसएस ने संगठित भूमिका निभाई। 1977 के आंध्र चक्रवात में राहत कार्य किया। यह योगदान दर्शाता है कि कैसे अनुशासन और आत्मविश्वास सेवा में बदल जाते हैं। संगठन ने हिंदू समाज में एकता लाई  जो आज भारत की वैश्विक छवि को मजबूत कर रही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संगठन, अनुशासन और आत्मविश्वास का प्रतीक है जो 100 वर्षों से राष्ट्र निर्माण में जुटा है। डॉ. हेडगेवार का सपना आज लाखों स्वयंसेवकों के माध्यम से साकार हो रहा है। जैसे गुरुजी गोलवलकर ने कहा, “संघ की सफलता हिंदू समाज में बढ़ते आत्मविश्वास में दिखती है।” भविष्य में भी, यह संगठन भारत को मजबूत बनाने में योगदान देगा। आरएसएस सिखाता है कि व्यक्ति का अनुशासित जीवन ही राष्ट्र का आधार है। यह प्रतीक न केवल हिंदू समाज का बल्कि पूरे भारत का गौरव है।

संदीप सृजन