कविता अनुवर्त्ती रात December 15, 2012 / December 15, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on अनुवर्त्ती रात विजय निकोर दीवार पर दो घड़ियाँ लगा देने से रात कभी जल्दी नहीं कटती । कोई हादसा नया छोटा-सा, बड़ा-सा ढीठ और बेअदब संतरी-सा कमरे में खड़ा रात को सोने नहीं देता, सरकने नहीं देता । कितने पुराने असम्बद्ध हादसे कि जैसे सारे सोय संतरी जागे, इन आन्तरिक संतरियों की फ़ौज रात को अभित्रस्त […] Read more » अनुवर्त्ती रात