गजल साहित्य आग बुझती जा रही है बस धुंआ सा रह गया July 20, 2017 / July 20, 2017 by कुलदीप प्रजापति | Leave a Comment आग बुझती जा रही है बस धुंआ सा रह गया राजनीती देख लगता, ये तमाशा रह गया, जात में बंटते दिखे, धर्मों के ठेकेदार सब आदमी उनकी जिरह में बस ठगा सा रह गया, एक बदली ने गिराई चंद बूंदे आस की, उस भरोसे की वजह से खेत प्यासा रह गया, हर […] Read more » आग बुझती जा रही है