कविता गरमी मई की जून की April 2, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment आई चिपक पसीने वाली, गरमी मई की जून की| चैन नहीं आता है मन को, दिन बेचेनी वाले | सल्लू का मन करता कूलर , खीसे में रखवाले | बातें तो बस उसकी बातें , बातें अफलातून की | दादी कहतीं सत्तू खाने , से जी ठंडा होता | जिसने बचपन से खाया है, तन […] Read more » poem on summer गरमी मई की जून की