लेख
घाटी के आँसू
/ by डॉ. सत्यवान सौरभ
घाटी जहाँ फूल खिलते थे, अब वहाँ सिसकती शाम,वेदना की राख पर टिकी, इंसानियत की थाम।कहाँ गया वह शांति-सूर्य, जो पूरब से उठता था?आज वहाँ बस मौन है, जहाँ कल गीत बहता था। पहलगाम की घाटियाँ, रोईं बहाये नीर।धर्म पे वार जो हुआ, मानवता अधीर।संगिनी का चीखना, गूँजा व्याकुल शोर।छिन गया पल एक में, उसका […]
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