चिंतन धर्म-अध्यात्म जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा June 17, 2013 / June 17, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा दुनिया में जहां मानवीय मूल्यों को प्रधानता प्राप्त है वहाँ लोक सेवा, परोपकार और सदाशयता के साथ ही तमाम नैतिक मूल्यों और आदर्शो को महत्त्व प्राप्त है। लेकिन जहाँ-जहाँ किसी भी अंश में व्यवसायिक मनोवृत्ति या स्वार्थ पूर्ण मानसिकता आ जाती है वहाँ-वहाँ न धर्म-कर्म है, न सामाजिक विकास की स्वस्थ परंपराएं और न ही […] Read more » जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा