गजल जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है June 7, 2011 / December 11, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है। सुबह और होती है शाम कुछ और गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है। कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ कभी कोई भी सजा दिला देती है। चादर ओढ़ लेती है आशनाई की हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है। चलते […] Read more » life घुँघरू जिंदगी