कविता तुला December 4, 2014 / December 4, 2014 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment नागफनी सरीखे उग आये है कांटे , दूषित माहौल में इच्छाये मर रही है नित चुभन से दुखने लगा है, रोम-रोम। दर्द आदमी का दिया हुआ है चुभन कुव्यवस्थाओं की रिसता जख्म बन गया है अब भीतर-ही-भीतर। सपनो की उड़ान में जी रहा हूँ’ उम्मीद का प्रसून खिल जाए कहीं अपने ही भीतर से। डूबती […] Read more » तुला