कविता नन्हीं जी April 21, 2017 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment आज हमारी नन्हीं जी ने, रोटी सुन्दर गोल बनाई। कई दिनों से सीख रही थी, रोटी गोल बनेगी कैसे। बन जाता आकार चीन सा, कभी बना रशिया के जैसे। बहुत दिनों के बाद अधूरी, साध आज पूरी हो पाई। हँसा गैस का चूल्हा,काला, गूँगा ,गोल तवा मुस्काया। पटा और बेलन ने उससे, हलो कहा और […] Read more » नन्हीं जी