दोहे साहित्य नारी बिन सूना जगत June 28, 2013 by श्यामल सुमन | 2 Comments on नारी बिन सूना जगत मँहगाई की क्या कहें, है प्रत्यक्ष प्रमाण। दीन सभी मर जायेंगे, जारी है अभियान।। नारी बिन सूना जगत, वह जीवन आधार। भाव-सृजन, ममता लिए, नारी से संसार।। भाव-हृदय जैसा रहे, वैसा लिखना फर्ज। और आचरण हो वही, इसमें है क्या हर्ज।। कट जायेंगे पेड़ जब, क्या तब होगा हाल। अभी प्रदूषण इस […] Read more » नारी बिन सूना जगत