विविधा चिता की आग से बुझती है पेट की आग August 10, 2015 / August 11, 2015 by संजय चाणक्य | Leave a Comment संजय चाणक्य ‘‘बच्चे भूखें सो गए होकर बहुत अधीर।। चूल्हे पर पकती रही आश्वासन की खीर।।’’ जब भी मै फटे पुराने कपडे औरअर्धनग्न अवस्था में देश के भविष्यों को कूड़ों की ढेर पर देखता हू तो बरबस मेर मुंह से वर्षो पुरानी वह गीत फूट पड़ती है ‘‘बचपन हर गम से बेगाना होता है।’’ सोचता […] Read more » चिता की आग पेट की आग