कविता साहित्य मानसिक पतन September 5, 2016 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment उपहास और उलाहना समाज में साथ दौड़ते रहते हैं, जैसे कोई पतंगा भोजन की तलाश में भागता है। एक चौराहे के मानिंद मानता है समग्र शक्ति को, जहाँ कल्पित जिंदगी का नाम गुजर भर जाना है। शहर की भाषा में आधी आबादी एक गहरा तंज है, आदमी स्त्री को गहरे चिंतन में भी शक से […] Read more » मानसिक पतन