कविता मुझको “तुम्हारी” ज़रूरत है! April 30, 2013 / April 30, 2013 by विजय निकोर | 3 Comments on मुझको “तुम्हारी” ज़रूरत है! दूर रह कर भी तुम सोच में मेरी इतनी पास रही, छलक-छलक आई याद तुम्हारी हर पल हर घड़ी। पर अब अनुभवों के अस्पष्ट सत्यों की पहचान विश्लेषण करने को बाधित करती अविरत मुझको, कि “पास” हो कर भी तुम व्यथा से मेरी अनजान हो कैसे, या, ख़्यालों के खतरनाक ज्वालामुखी पथ पर कब किस चक्कर, […] Read more » मुझको "तुम्हारी" ज़रूरत है!