कविता मेरी तड़त का मतलब March 2, 2011 / December 15, 2011 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | 3 Comments on मेरी तड़त का मतलब मेरा शरीर मेरा है| जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ! हो कौन तुम- मुझ पर लगाम लगाने वाले? जब तुम नहीं हो मेरे मुझसे अपनी होने की- आशा करते क्यों हो? पहले तुम तो होकर दिखाओ समर्पित और वफादार, मैं भी पतिव्रता, समर्पित और प्राणप्रिय- बनकर दिखाऊंगी| अन्यथा- मुझसे अपनी होने की- आशा करते क्यों हो? तुम्हारी […] Read more » मेरी तड़त मेरी तड़त का मतलब