गजल यह मुर्दों की बस्ती है June 19, 2013 / June 19, 2013 by श्यामल सुमन | 2 Comments on यह मुर्दों की बस्ती है व्यर्थ यहाँ क्यों बिगुल बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है कौवे आते, राग सुनाते. यह मुर्दों की बस्ती है यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी राजा गीदड़ देश चलाते, यह मुर्दों की बस्ती है गिद्धों की अब निकल पड़ी है, वे दरबार सजाते हैं बिना रोक वे धूम मचाते, […] Read more » यह मुर्दों की बस्ती है
गजल यह मुर्दों की बस्ती है June 18, 2013 / June 18, 2013 by श्यामल सुमन | Leave a Comment व्यर्थ यहाँ क्यों बिगुल बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है कौवे आते, राग सुनाते. यह मुर्दों की बस्ती है यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी राजा गीदड़ देश चलाते, यह मुर्दों की बस्ती है गिद्धों की अब निकल पड़ी है, वे दरबार सजाते हैं बिना रोक वे धूम मचाते, यह मुर्दों […] Read more » यह मुर्दों की बस्ती है