कविता साहित्य
रजनीगन्धा हूँ मैं,
by के.डी. चारण
के डी चारण रजनीगन्धा हूँ मैं, रंगोआब खुशबू से शेष जी, हां रजनीगंधा ही हूँ मैं, वह रंगोआब, खुशबू वाला पुष्प नहीं, जो जीवन में भाव भरता है, नयापन लाता है। समय रंगकर होठों की लाली बढाने वाली, पीक के लाल छर्रों वाली, मुलायम-कठोर कणों के गुण धर्म वाली रजनीगन्धा ही हूँ मैं। एक पतली […]
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