कविता रोते कितने लोग यहाँ January 26, 2014 / January 26, 2014 by श्यामल सुमन | 1 Comment on रोते कितने लोग यहाँ इस माटी का कण कण पावन। नदियाँ पर्वत लगे सुहावन। मिहनत भी करते हैं प्रायः सब करते हैं योग यहाँ। नीति गलत दिल्ली की होती रोते कितने लोग यहाँ।। ये पंजाबी वो बंगाली। मैं बिहार से तू मद्रासी। जात-पात में बँटे हैं ऐसे, कहाँ खो गया भारतवासी। हरित धरा और खनिज सम्पदा का अनुपम संयोग […] Read more » रोते कितने लोग यहाँ