कविता पूछ परख के चक्कर में घनचक्कर हुआ लोकतंत्र June 23, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- मर गए अनगिनत गरीब देखते सियासी तंत्र मंत्र महंगाई की ज्वाला से घिरा व्याकुल सारा प्रजातंत्र कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, जंगल बना जनतंत्र पूंजीधीश के गले लगते भजते विकास का महामंत्र हवा पानी तक हजम कर गए जिनके उन्नत सयंत्र अच्छा है यदि जपें न्याय सम्मत जनहित का जंत्र लोकहित के नारों […] Read more » लोकतंत्र लोकतंत्र कविता हिन्दी कविता