कविता अनुप्रश्न October 17, 2012 / October 17, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on अनुप्रश्न विजय निकोर स्तब्धता को मसोसती बूँद-बूँद टपकते पानी की टप-टप रसोई की साँस हो जैसे ! थाली में गरम रोटी परोसे पुकार रही है प्रतिदिन कई सालों से बार-बार तुम्हारी प्यारी आवाज़ । जीभ पर स्वाद तो अभी भी है तुम्हारी मलका-मसूर का, तुम्हारे कोमल हाथों के खिलाए मक्की की रोटी के कौर […] Read more » poem by vijay ji अनुप्रश्न