कविता साहित्य
आंसू निकल पड़े
by डा.राज सक्सेना
लेने सबाब तीर्थ का, घर से निकल पड़े | केदार-बद्री धाम के, दर पे निकल पड़े | सब ठीक चल रहा था,मौसम भी साफ था, कुछ बादलों के झुण्ड,बरसने निकल पड़े | दीवानगी-ए-अकीदत पे जरा गौर तो करें, ठहरे जरा सी देर मगर,फिर से चल पड़े | लाखों का वो हुजूम जो,चल तो रहा था,पर- […]
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