कविता ” आप ” और ” तुम “ October 3, 2012 / October 3, 2012 by विजय निकोर | 5 Comments on ” आप ” और ” तुम “ विजय निकोर औरों से अधिक अपना लाल रवि की प्रथम किरण-सा कौन उदित होता है मन-मंदिर में प्रतिदिन मधुर-गीत-सा मंजुल, मनोग्राही, भर देता है आत्मीयता का अंजन इन आँखों में, टूट जाते हैं बंध औपचारिकता के उस पल जब वह ” आप ” — ” आप ” से ” तुम ” बन जाता है । […] Read more » आप " और " तुम "