कविता इतना दर्द बन कर क्यूँ आती हो ! April 16, 2013 by विजय निकोर | Leave a Comment उस कठोर कठिन श्राप-सी शाम के बाद भी मेरे ख़यालों में स्वर-लहरी बनी कितनी सरलता से चली आती हो, पर जब भी आती हो तुम… तुम इतना दर्द बन कर क्यूँ आती हो ? हर प्रात व्यथित, हर शाम उदास, साँसों के तारों को मानो […] Read more » इतना दर्द बन कर क्यूँ आती हो !