कविता साहित्य
एक अनाम के नाम
by डा.राज सक्सेना
रससिक्त छंद कुछ कविता के, कर रहा समर्पण प्रिय तुमको | चाहो, उर मे रख, दुलरा कर, संरक्षित कर लेना इनको | यूं तो तुम स्वंय अकल्पित हो, ऐसा प्रिय रूप, तुम्हारा है | लगता है स्वंय , विधाता ने, रच-रच कर तुम्हें संवारा है | है अंग सुगढ, हर सांचे सा, हर […]
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