समाज कूड़े मे भविष्य तलाशता भारत का बचपन January 2, 2017 by अनिल अनूप | Leave a Comment अनिल अनूप हमारे समाज में आनन्द की अनुभूति के अलग-अलग मायने हो गये हैं। विषमता और गरीबी ने आनन्द की एक ऐसी ‘समानान्तर परिभाषा’ गढ़ दी है जो पारम्परिक परिभाषा से न सिर्फ अलग है बल्कि हृदयविदारक और क्रूर भी है। क्या जो बच्चा कूड़े के पर्वतनुमा ढेर से खुशी का इजहार करते हुए फिसलते […] Read more » कूड़े मे बचपन कूड़े मे भविष्य कूड़े मे भविष्य तलाशता भारत का बचपन