कविता साहित्य खिलौना September 11, 2015 by श्यामल सुमन | Leave a Comment खिलौना देख के नए खिलौने खुश हो जाता था बचपन में। बना खिलौना आज देखिये अपने ही जीवन में।। चाभी से गुड़िया चलती थी बिन चाभी अब मैं चलता। भाव खुशी के न हो फिर भी मुस्काकर सबको छलता।। सभी काम का समय बँटा है अपने खातिर समय कहाँ। रिश्ते नाते संबंधों के बुनते हैं […] Read more » poems by Shyamal Suman खिलौना