कविता गरमी, मई-जून की April 22, 2014 / April 22, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- आई चिपक पसीने वाली, गरमी मई की जून की| चैन नहीं आता है मन को, दिन बेचेनी वाले| सल्लू का मन करता कूलर, खीसे में रखवाले| बातें तो बस उसकी बातें, बातें अफलातून की| दादी कहतीं सत्तू खाने, से जी ठंडा होता| जिसने बचपन से खाया है, तन मन चंगा होता| खुद ले […] Read more » summer गरमी गर्मी