गजल गज़ल: रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ –सतेन्द्रगुप्ता June 21, 2012 / June 20, 2012 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ जुदा हो गई खुद-बुलंदी की राख़ जमा हो गई। लौटकर न आये वे लम्हे फिर कभी और ज़िन्दगी बड़ी ही तन्हा हो गई। ज़िस्म का शहर तो वही रहा मगर खुदमुख्तारी शहर की हवा हो गई। कैसे गुज़री शबे-फ़िराक़, ये न पूछ मेरे लिए तो मुहब्बत तुहफ़ा हो गई। इस क़दर बढ़ी […] Read more » gazal by satendra gupta गज़ल: रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ –सतेन्द्रगुप्ता