व्यंग्य जाति तोड़कर फंस गया रे भाया…! February 6, 2014 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- कोई यकीन करे या न करे, लेकिन यह सच है कि जाति तोड़ने का दुस्साहस कर मैं विकट दुष्चक्र में फंस चुका हूं। जिससे निकलने का कोई रास्ता मुझे फिलहाल नहीं सूझ रहा। पता नहीं क्यों मुझे यह डर लगातार सता रहा है कि मेरे इस दुस्साहस का बोझ मेरी […] Read more » satire on caste system जाति तोड़कर फंस गया रे भाया...!