कविता साहित्य तन्हाई July 27, 2016 by चारु शिखा | Leave a Comment तन्हाई छोड़ देती हूँ सिलवटे अब ठीक नहीं करती, मन सुकून चाहता , जो शायद मिल पाना मुश्किल, मुस्कान भी झूठी लगती, अच्छी थी कच्ची मिट्टी की मुस्कान, वक्त के साथ, सोच बदल गयीं। पर हकीकत कुछ और हैं. सहारा नहीं साथ की दरकार हैं, अब उसकी भी नहीं आस है, ढूंढती नजरें पर सब […] Read more » तन्हाई