कविता
दूरियों का दर्द
/ by विजय निकोर
यही खयाल आता रहा, हम उसे ठेलते रहे, वह लौट आता रहा, आपके बहुत, बहुत पास थे हम, अब आपके कहने पर आपसे कुछ दूर हुए, पर रहा न गया, फिर कुछ पास, फिर आपसे दूर हुए। यह प्रयास साँसों के आने-जाने-सा तब से चलता रहा, बस, चलता रहा। कौन किस सरलता को सह न सका, […]
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