कविता
देश की पीठ में खंजर
/ by डॉ. सत्यवान सौरभ
गद्दारों की बिसात बिछी, देश की मिट्टी रोती है,सीमा के प्रहरी चीख उठे, जब अंदर से चोट होती है।ननकाना की राहों में छुपा, विश्वास का बेईमान,पैसों की खातिर बेच दिया, अपना पावन हिंदुस्तान।मंदिर-मस्जिद की आड़ में, देशद्रोह का बीज पनपता,सोने की चिड़िया का कंठ घुटा, जब अंदर से लहू बहता। ज्योति ने छल की ज्वाला […]
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