आलोचना धूमिल की कविताओं में व्यक्त स्त्री-विरोधी दृष्टिकोण — सारदा बनर्जी June 27, 2013 by सारदा बनर्जी | 6 Comments on धूमिल की कविताओं में व्यक्त स्त्री-विरोधी दृष्टिकोण — सारदा बनर्जी धूमिल की कविताएं जनतंत्र को संबोधित करने वाली कविताएं हैं। ये कविताएं सीधे-सीधे देश के लोकतंत्र, संविधान, संसद और नेता की तीखी आलोचना में लिखी गई और उन्हें चुनौती देती कविताएं हैं। धूमिल देश की पूँजीवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे, फलतः उन्होंने अपनी कविताओं में इस असंतुष्टि को बड़े आक्रोश के साथ व्यक्त […] Read more » धूमिल