कविता
नींबू की चाह
/ by आर के रस्तोगी
चाह नहीं मेरी,मिर्ची की साथ मै गूंथा जाऊं।चाह नहीं मेरी,दरवाजे पर लटकाया जाऊं।। चाह नहीं मेरी,नमक चीनी के साथ में घुल जाऊं।चाह नहीं मेरी,मटर की चाट का स्वाद बन जाऊं।। चाह नहीं मेरी,भूत प्रेत से मै पीछा छुड़वाऊं।चाह नहीं मेरी,सबको बुरी नजरों से बचाऊं।। चाह नहीं मेरी,सब्जी वालो को मैं अमीर बनाऊं।चाह नहीं मेरी,नींबू के […]
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