Tag: पुरबिया पुत्रों की पीड़ा

व्यंग्य साहित्‍य

कौन समझे पुरबिया पुत्रों की पीड़ा …..!!

| Leave a Comment

पूरबिए रोजी - रोटी की तलाश में चाहे अपनी जड़ों से हजारों किलोमीटर दूर या परदेश ही निकल जाएं। लेकिन पिता रहते बाबूजी ही हैं। बेटे से सदा नाराज। बेटा कालेज में पढ़ रहा है, पर बाबूजी को उसकी शादी की चिंता खाए जा रही है। शादी हो गई, तो नाराज ... कि इसे तो घर - परिवार की कोई चिंता ही नहीं। बेटा नौकरी की तलाश में कहीं दूर निकल जाए या घर पर रह कर ही कोई धंधा - कारोबार करे, तो भी शिकायत। मड़हे में बैठ कर बेटे की बुराई ही करेंगे कि भैया , एेसे थोड़े धंधा - गृहस्थी चलती है। परिवार की गाड़ी खींचने के लिए हमने कम पापड़ नहीं बेले। लेकिन आजकल के लौंडों को कौन समझाएं... वगैरह - वगैरह चिर - परिचित जुमले।

Read more »