कविता
मृदु-मंगल उपहार हो
by डा.राज सक्सेना
डा.राज सक्सेना मधुमय-मधुर कमल पांखों का, परिपूरित आगार हो | संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो | कज्जलकूट केश, कोमलतम्, गहन-बरौनी, अविरलभंगिम | मृगछौने सम, नयन सलोने, नहीं ठहरते, चंचल अग्रिम | तीव्र नासिका, अधर अछूते, अमृत-मयी बहार हो | संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो […]
Read more »