कविता
मेरा जूता है अफगानी
/ by आर के रस्तोगी
मेरा जूता है अफगानी,सर पर गोल टोपी,फिर भी दिल है तालिबानी। निकल पड़े हैं खुली सड़क पर,अपनी बंदूकें हम ताने,मिल जाए जो अमेरिकन हमको,उस पर गोली हम ताने,बीस वर्ष तक गुलामी सहीतब बने हम तालिबानी।मेरा जूता है अफगानी ……… औरतों की हम बेइज्जती करते,जो मर्जी आती उसको हम करते,निहत्थों पर कोड़े बरसाते,बच्चो को भूख से […]
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