कविता मेरा मौन September 4, 2014 / September 4, 2014 by के.डी. चारण | 4 Comments on मेरा मौन के.डी. चारण मुझमें एक मौन मचलता है, भावों में आवारा घुलकर मस्त डोलता है, मुझमें एक मौन मचलता है। शिशुओं की करतल चालों में, आवारा यौवन सालों में, मदिरा के उन्मत प्यालों में, बुढ्ढे काका के गालों में, रोज बिलखता है। मुझमें एक मौन मचलता है। लैला मज़नू की गल्पें सुनकर, औरों की आँँखों […] Read more » मेरा मौन