कविता रंग नहीं होली के रंगों में March 15, 2014 by हिमकर श्याम | 2 Comments on रंग नहीं होली के रंगों में -हिमकर श्याम- फिर बौरायी मंजरियों के बीच कोयल कूकी, दिल में एक टीस उठी पागल भोरें मंडराने लगे, अधखिली कलियों के अधरों पर पलाश फूटे या आग किसी मन में, चूड़ी की है खनक कहीं, कहीं थिरकन है अंगों में, ढोल-मंजीरों की थाप गूंजती है कानों में मौसम हो गया है अधीर, बिखर गये चहूं […] Read more » Poem on Holi रंग नहीं होली के रंगों में