कविता
रिश्तों की रणभूमि
/ by डॉ. सत्यवान सौरभ
लहू बहाया मैदानों में,जीत के ताज सिर पर सजाए,हर युद्ध से निकला विजेता,पर अपनों में खुद को हारता पाए। कंधों पर था भार दुनिया का,पर घर की बातों ने झुका दिया,जिसे बाहरी शोर न तोड़ सका,उसी को अपनों के मौन ने रुला दिया। सम्मान मिला दरबारों में,पर अपमान मिला दालानों में,जहां प्यार होना चाहिए था,मिला […]
Read more »