कविता रे देवों के अंश जाग जा……… September 23, 2014 by के.डी. चारण | 3 Comments on रे देवों के अंश जाग जा……… रे देवों के अंश जाग जा……… कौटिक देखे कर्मरत, पर तुझसा दिखा न कोई। इतने सर संधान किये,फिर क्यों तेरी भाग्य चेतना सोई।। आज रौशनी मद्धम-मद्धम, तारों की भी पांत डोलती, खाली उदर में आती-जाती, सांय-सांय सी सांस बोलती, कितने घर चूल्हा ना धधका, सब घर चाकी सोई है। रे ! देवों के अंश […] Read more » रे देवों के अंश जाग जा