कविता
लालच और रिश्तों की त्रासदी
/ by डॉ. सत्यवान सौरभ
लालच आँखें मूँद दे, भेद न देखे प्रीत।भाई भाई शत्रु बने, टूटे अपने मीत।। धन के पीछे दौड़कर, भूले यूँ सम्मान।घर आँगन में छा गया, कलह और अपमान।। ममता होकर लालची, रिश्ते करे उदास।स्वार्थ की इस आँच में, जले सगे विश्वास।। लोभ अंधेरा बन गया, बुझा स्नेह का दीप।अपने ही अब भूलते, प्रेम सुधा की […]
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