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कविता

वन्दे मातरम

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वन्दे मातरम नहीं पूजा है किसी की,  ये तो सिर्फ एक माँ को उसके बेटे का सलाम है। यही समझाते हमने सदियाँ गुजार दीं, पर आज तक इसमें रोड़ा इस्लाम है।। जिस सोच ने विभाजित कर दिया देश को,  वो आज भी उसी रूप में ही विद्यमान   है। सेकुलर और तुष्टीकरण की नीतियों से, हिंद में भी बन गए कई तालिबान  हैं।। राष्ट्रभक्त मुस्लिमो को बरगला रहें हैं जो,  ऐसे  एक  नहीं  और कई  रहमान  हैं। फूंक के तिरंगा यदि जिन्दा है कोई तो,  संविधान ऐसे चन्द गद्दारों का गुलाम  है।। मातृभूमि और माँ की सेवा से बड़ा ना धर्मं,  ऐसा सोचना भी क्या सांप्रदायिक काम है? मुल्क से भगावो ऐसे देशद्रोहियों को जो, […]

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