व्यंग्य व्यंग्य बाण : आत्मकथा August 11, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी कई दिन से बेचैन थे। जब भी मिलते, ऐसा लगता मानो कुछ कहना चाहते हैं; पर बात मुंह से निकल नहीं पा रही थी। मन की बात बाहर न निकले, तो वह भी पेट की गैस की तरह सिर पर चढ़ जाती है। रक्षाबंधन वाले दिन मैं उनके घर गया, तो शर्मानी मैडम […] Read more » व्यंग्य बाण : आत्मकथा