कविता साहित्य शहर मर भी रहा है September 16, 2016 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment हर शहर की सरहद के उस पार से कुछ ठंडी हवाएँ हर बार जरूर आती है अपने साथ सभ्यताओं का एक पुलिंदा भी साथ में गाहे-ब-गाहे जरूर ले आती हैं वही हवाएँ, शहरी हवाओं के साथ मिलकर एक रंग बना देती है रंग शहर के पुरातन के साथ भी अक्सर घुल-मिल जाया करता है जैसे […] Read more » शहर मर भी रहा है