कविता शोर बरपा है अजब April 9, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment सियासती मयख़ाने में कुछ रिंद नहीं पी रहे अबके उनके पैमाने से ठुकरा कर मुदब्बिर का हर जाम ए नज़राना उड़ जाना चाहे बंदी सियासी कैदखाने से गर दस्तूर पुराने टूट गये जाल से परिंदे छूट गये जीने में क़नाअत कर बैठे लालच से बग़ावत कर बैठे कैसे भी ये आग बुझा डालो इरादे पर […] Read more » शोर बरपा है अजब